बहुत समय पहले की बात है, एक कुत्ता बहुत भूखा था। वह इधर-उधर खाने की तलाश में घूम रहा था। काफी देर भटकने के बाद उसे एक कसाई की दुकान के पास एक हड्डी मिली। हड्डी में थोड़ा बहुत मांस भी चिपका हुआ था। कुत्ता बहुत खुश हो गया। वह सोचने लगा, “वाह! आज तो मजा आ गया, अब कहीं जाकर आराम से बैठकर इसे खाऊंगा।”
वह हड्डी को मुंह में दबाकर एक शांत जगह की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक नदी पार करनी थी। नदी पर एक लकड़ी का पुल था। जब कुत्ता पुल पर चढ़ा, तो नीचे बहते पानी में उसे अपनी ही परछाई दिखाई दी। लेकिन कुत्ते को लगा कि यह कोई और कुत्ता है, जिसके मुंह में उससे भी बड़ी और स्वादिष्ट हड्डी है।
अब उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा, “अगर मैं इस दूसरे कुत्ते की हड्डी भी छीन लूं, तो मेरे पास दो हड्डियाँ हो जाएँगी!” यही सोचकर उसने जोर से भौंका और जैसे ही मुंह खोला, उसकी अपनी हड्डी पानी में गिर गई और बह गई।
कुत्ता जब नीचे झांका तो उसे एहसास हुआ कि वह कोई दूसरा कुत्ता नहीं था, बल्कि उसकी खुद की परछाई थी। अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा। वह बहुत दुखी हुआ और पछताने लगा। लेकिन अब कुछ भी नहीं किया जा सकता था।
कुत्ता खाली पेट, उदास मन से वहां से चला गया। उसने जीवन का एक बड़ा सबक सीखा।
👉 सीख: लालच बुरी बला है। जो है उसमें संतोष रखना चाहिए, वरना हाथ में आया भी चला जाता है।
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