महाभारत की लोकप्रिय कहानियां | Mahabharat Stories in Hindi

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प्राचीन भारत की सबसे महान और प्रसिद्ध महाकाव्य कहानियों में से एक है ‘महाभारत’। यह केवल एक युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि धर्म, अधर्म, नीति, राजनीति, प्रेम, बलिदान, और कर्म का अनोखा संगम है। इस महाग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी और इसमें कुल 18 पर्व हैं। यह कहानी दो कौरव और पांडव नामक राजकुलों के बीच संघर्ष की है, जो अंततः महाभारत युद्ध में परिणत होती है।

कहानी की शुरुआत हस्तिनापुर के राजा शांतनु से होती है। शांतनु का विवाह गंगा नाम की एक अप्सरा से हुआ। उनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ – देवव्रत। गंगा अपने वचन अनुसार पुत्र को जन्म देकर उसे गंगा में प्रवाहित कर देती थीं। जब वह आठवें पुत्र को भी बहाने लगीं, तो शांतनु ने उन्हें रोका। इस पर गंगा शांतनु को छोड़ कर चली गईं और देवव्रत को उनके पास छोड़ दिया। देवव्रत बाद में भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कुछ समय बाद शांतनु का विवाह सत्यवती से हुआ। सत्यवती से उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए – विचित्रवीर्य और चित्रांगद। चित्रांगद की अल्पायु में मृत्यु हो गई और विचित्रवीर्य भी बिना संतान के चल बसे। तब सत्यवती ने अपने पहले विवाह से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास को बुलाया और विचित्रवीर्य की पत्नियों से संतान उत्पन्न करने को कहा। इस प्रकार धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म हुआ।

धृतराष्ट्र अंधे थे, अतः राज्य का कार्यभार पांडु को सौंपा गया। पांडु की दो पत्नियाँ थीं – कुंती और माद्री। एक बार शापवश पांडु ने तपस्या का मार्ग अपनाया और कुंती को वरदान स्वरूप पुत्र प्राप्ति का मंत्र दिया। कुंती से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तथा माद्री से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ। ये पाँचों भाई पांडव कहलाए।

पांडु की मृत्यु के बाद, पांडव अपनी माता कुंती के साथ हस्तिनापुर लौटे। वहां उनके चचेरे भाई कौरव – दुर्योधन, दु:शासन आदि – उनसे ईर्ष्या करते थे। धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन, पांडवों से शत्रुता रखने लगा। गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को शिक्षा दी। अर्जुन सबसे प्रतिभाशाली धनुर्धर निकला।

एक बार एक प्रतियोगिता में अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीत लिया। द्रौपदी को पांडवों ने अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इधर, दुर्योधन ने पांडवों को छलपूर्वक जुए में हराकर वनवास भेज दिया। उन्हें 13 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास झेलना पड़ा। जब पांडवों ने अपना वनवास और अज्ञातवास पूरा कर लिया, तो उन्होंने अपना राज्य लौटाने की मांग की। लेकिन दुर्योधन ने मना कर दिया। तब युद्ध अनिवार्य हो गया।

महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ। दोनों पक्षों ने बड़े-बड़े योद्धाओं को आमंत्रित किया। अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे। युद्ध से पहले अर्जुन ने जब अपने रिश्तेदारों, गुरुओं और मित्रों को युद्धभूमि में देखा, तो वह विचलित हो गया। तब श्रीकृष्ण ने उसे ‘भगवद्गीता’ का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने धर्म, कर्म, योग और आत्मा के रहस्य को समझाया।

युद्ध दस दिनों तक चला। पहले भीष्म पितामह सेनापति थे। उन्होंने अद्वितीय पराक्रम दिखाया लेकिन शिखंडी के कारण अर्जुन ने उन्हें घायल कर दिया और वे शरशैया पर लेट गए। इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य सेनापति बने। उन्होंने भी भीषण युद्ध किया, लेकिन जब उन्हें झूठ बताया गया कि उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई है, तब उन्होंने अस्त्र छोड़ दिया और ध्यान में लीन होकर वीरगति को प्राप्त हुए।

इसके बाद कर्ण ने सेनापति का पद संभाला। कर्ण ने अर्जुन से भयंकर युद्ध किया, लेकिन युद्ध के समय उसका रथ का पहिया धरती में धँस गया और तब अर्जुन ने उसे मार डाला। अंत में शकुनि, दु:शासन और दुर्योधन मारे गए। भीम ने दु:शासन की छाती चीर कर उसकी छाती का खून द्रौपदी के बालों में लगाया, जैसा कि उसने प्रतिज्ञा की थी।

युद्ध समाप्त हुआ। पांडव विजयी हुए लेकिन उन्होंने अपने सगे-संबंधियों को खो दिया था। युधिष्ठिर को गद्दी पर बैठाया गया लेकिन वह राज्य संचालन से संतुष्ट नहीं थे। अंत में पांडवों ने अपना राज्य अपने पोते परीक्षित को सौंप दिया और हिमालय की ओर प्रस्थान किया। एक-एक करके सभी भाई स्वर्ग चले गए। केवल युधिष्ठिर जीवित स्वर्ग गए क्योंकि उन्होंने जीवनभर धर्म का पालन किया।

इस प्रकार, महाभारत केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। इसमें जीवन के हर पहलू की व्याख्या है – नीति, युद्ध, प्रेम, बलिदान, मोह, वैराग्य, और आत्मज्ञान। भगवद्गीता के उपदेश आज भी लोगों को जीवन का मार्ग दिखाते हैं।

कहानी से शिक्षा (Moral of the Story)

महाभारत की यह गाथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में सत्य और धर्म की राह कठिन ज़रूर होती है, लेकिन अंततः वही विजयी होती है।


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