(एक प्रेरणादायक नैतिक कहानी | Short stories in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में एक गरीब लेकिन मेहनती लड़की रहती थी। उसका नाम था गौरी। गौरी का परिवार बड़ा था — माँ, दो छोटे भाई और एक बीमार पिता। घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी, लेकिन गौरी कभी भी हिम्मत नहीं हारती थी। वह जानती थी कि अगर मेहनत की जाए, तो हालात बदले जा सकते हैं।
गौरी के पास एक गाय थी — उसके परिवार की सबसे बड़ी पूंजी। हर सुबह वह सूरज उगने से पहले उठ जाती, अपने छोटे से घर के आँगन में झाड़ू लगाती, फिर गाय को चारा खिलाती और बड़ी सावधानी से दूध दुहती। वह दूध को एक साफ मटके में भरकर उसे अपने सिर पर रखती और दूर शहर के बाजार की ओर पैदल निकल पड़ती। रास्ता करीब 5 किलोमीटर लंबा था — कच्ची पगडंडी, कभी धूल भरी, कभी कीचड़ भरी। लेकिन गौरी के कदम कभी नहीं रुकते थे।
उस दिन कुछ अलग था। गौरी की गाय ने पहले से ज़्यादा दूध दिया था। वह मटका पूरी तरह भर गया था और वह अंदर से बहुत खुश थी। मटके का वजन उसके सिर पर भारी लग रहा था, लेकिन मन में जो उम्मीद की रोशनी थी, उसने उसके क़दमों को हल्का कर दिया था।
चलते-चलते गौरी के मन में कई ख्याल आने लगे। वह मुस्कराने लगी और खुद से बातें करने लगी — “आज दूध ज़्यादा है। अगर ठीक से बेच पाई, तो अच्छे पैसे मिलेंगे।”
उसने आगे सोचा, “पैसों से मैं अंडे खरीदूंगी। और उन अंडों से कुछ ही हफ्तों में मुर्गियाँ निकलेंगी। मुर्गियाँ हर दिन अंडे देंगी, और मैं उन अंडों को बेचकर और पैसे कमाऊंगी।”
अब उसकी कल्पना और भी रंगीन होने लगी।
“फिर जब मुर्गियाँ और चूजे ज़्यादा हो जाएंगे, तो मैं गाँव में सबसे बड़ी अंडा-बिक्री वाली बन जाऊंगी। धीरे-धीरे पैसे इकट्ठे होंगे और मैं अपने लिए सोने की झुमके खरीदूंगी।”
गौरी के चेहरे पर चमक आ गई। उसे महसूस हुआ जैसे वो पहले से ही अमीर हो गई हो। उसकी चाल और आत्मविश्वासी हो गई।
“जब मैं सोने की बालियाँ पहनूँगी,” वह सोचने लगी, “तो गाँव की औरतें कहेंगी – ‘देखो गौरी को! कैसे खुद मेहनत करके ऊपर उठ गई।’”
वो अपनी कल्पना में खुद को उन औरतों के बीच मुस्कराते हुए देखने लगी — सिर ऊँचा, चेहरे पर संतोष, और कानों में झिलमिलाते झुमके। उसने अपने सिर को थोड़ा झटका दिया, जैसे बालियों की चमक औरों को दिखा रही हो…
…और तभी धड़ाम!
उसके सिर से मटका फिसला और ज़मीन से जा टकराया। सारा दूध चारों ओर बह गया। एक पल में सब कुछ खत्म।
गौरी सन्न रह गई।
उसने नीचे झुककर देखा — दूध मिट्टी में मिलकर बह चुका था। अब न वो बाजार जाएगी, न पैसे मिलेंगे, न अंडे, न मुर्गियाँ, न चूजे, और न ही सोने की बालियाँ।
वो वहीं पगडंडी पर बैठ गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए। लेकिन वह रोई नहीं। बस चुपचाप ज़मीन की ओर देखती रही। सपनों की जो कच्ची इमारत उसने अभी-अभी मन में बनाई थी, वो मटके के साथ ही चकनाचूर हो गई थी।
कुछ देर बाद, उसने एक गहरी साँस ली। धीरे-धीरे उठी और मटके के टूटे हुए टुकड़े उठाने लगी। हर टुकड़े के साथ जैसे वह अपनी टूटी उम्मीदों को समेट रही थी।
उसी वक्त पास के खेतों से एक बूढ़ी औरत आई। वह गौरी को देखती रही और धीरे से बोली,
“बेटी, सपने देखना बुरा नहीं है। लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए कदम ज़मीन पर रखने पड़ते हैं।”
गौरी ने अपनी आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कराई। अब वह समझ चुकी थी।
उस दिन गौरी ने कुछ नहीं बेचा, लेकिन उसने जीवन का एक बड़ा सबक सीख लिया —
“सपनों की इमारत तभी मजबूत होती है, जब उसकी नींव मेहनत और यथार्थ पर हो।”
अगले दिन गौरी ने फिर सुबह उठकर वही काम दोहराया — गाय को चारा दिया, दूध निकाला और मटका लेकर चल पड़ी — लेकिन इस बार उसका सिर ऊँचा था, और सोच ज़मीन पर।
अब वह हर कदम पर खुद से कहती —
“पहले मेहनत करूँगी, फिर सपने बुनूँगी।”
👉 सीख (Moral of the Story):
बिना मेहनत के सपने देखना ऐसे ही है जैसे बिना बीज बोए फसल की उम्मीद करना।
सबसे पहले अपने काम को पूरा करो, मेहनत करो, और फिर सपनों की ऊँचाई तय करो।
काम से पहले ख्वाब नहीं, ख्वाब से पहले काम जरूरी है।