बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में रामु नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह बहुत ही मेहनती और ईमानदार था। हर दिन वह अपने पुराने कुल्हाड़ी को लेकर पास के जंगल में जाता और पेड़ों से लकड़ियाँ काटता। उन्हीं लकड़ियों को बाजार में बेचकर वह अपने परिवार का पेट पालता था।
एक दिन वह हमेशा की तरह जंगल गया और एक पेड़ के नीचे खड़ा होकर लकड़ी काटने लगा। तभी अचानक, हाथ फिसल गया और उसकी कुल्हाड़ी पास की गहरी नदी में जा गिरी। रामु घबरा गया। वह जानता था कि उसके पास कुल्हाड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वह उदास होकर नदी किनारे बैठ गया और रोने लगा।
तभी नदी से एक चमकदार जलपरी निकली और बोली, “क्यों रो रहे हो, लकड़हारे?” रामु ने सारा किस्सा बता दिया। जलपरी मुस्कराई और नदी में डुबकी लगाकर एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर आई। “क्या यह तुम्हारी है?” रामु ने ईमानदारी से कहा, “नहीं, यह मेरी नहीं है।”
फिर जलपरी एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर आई। रामु ने फिर मना कर दिया। अंत में जलपरी ने एक लोहे की पुरानी कुल्हाड़ी लाकर पूछा, “क्या यह तुम्हारी है?” रामु की आँखें चमक उठीं। “हाँ! यही मेरी है!”
जलपरी उसकी ईमानदारी से बहुत खुश हुई। उसने रामु को उसकी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ सोने और चांदी वाली कुल्हाड़ियाँ भी इनाम में दे दीं।
👉 सीख: ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है। सच बोलने वालों को भगवान भी इनाम देते हैं।
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